नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥ भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!... मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥ लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥ धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे https://juliusyobny.eqnextwiki.com/4496659/considerations_to_know_about_shiv_chalisa_lyricsl